♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं? <br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir... <br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं? <br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?... <br /><br />➖➖➖➖➖➖ <br /><br />#acharyaprashant #desire #love <br /><br />वीडियो जानकारी: 03.01.24, वेदांत संहिता, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br /><br />वासना एव संसार इति सर्वा विमुञ्च ताः । <br />तत्त्यागो वासनात्यागात् स्थितिरद्य यथा तथा ॥ <br /><br />भावार्थ: <br />वासना ही संसार है, इसलिए इन सबका परित्याग कर दो। वासना त्याग से ही संसार का त्याग होता है। अब (शरीर, अन्त:करण और संसार की) चाहे जैसी स्थिति हो, उससे कोई सम्बन्ध नहीं रहता। <br />~ अष्टावक्र गीता, श्लोक 9.8 <br /><br />आपके ही अपने विकार आपके सामने संसार बनकर प्रकट हो जाते हैं I आपके विकार ही संसार को आपके लिए अर्थपूर्ण बनाते हैं I <br />वासनाएँ दो दिशा में जा सकती हैं I जो वासनाओं की प्राकृतिक दिशा है, वो तो यही है कि संसार से और और विषयों की माँग करते रहो, उनसे नाता जोड़ते हो, उनको आजमाते रहो, उम्मीद बैठाए रखो। <br />प्राकृतिक दिशा है वासनाओं की, वो तो यही है कि बढ़ते रहो, बढ़ते रहो, अनंत ब्रह्माण्ड हैं, अनंत विषय है I <br />इच्छा की, कामना की, स्वार्थ की, यह प्राकृतिक दिशा है <br />एक प्रेम की दिशा होती है। प्रेम की दिशा कहती है कि मिटना है सचमुच I <br />जो हमें मुक्त कर सकते हैं, उनसे भी हमारा स्वार्थ ही होता है I <br />बिना स्वार्थ के हम उन्हें मन में जगह देते नहीं, उनसे भी हमारा स्वार्थ ही होता है पर एक विशेष किस्म का स्वार्थ होता है I <br />उनसे हमारा स्वार्थ होता है मुक्ति का, और जिससे मुक्ति का स्वार्थ होता है, उसे परमार्थ कहते हैं I <br /><br />~ आप कैसी दुनिया चाहते हो? <br />~ संसार कितने प्रकार के होते हैं? <br />~ आपका दुनिया के साथ कैसा संबंध है? <br />~ आप जैसे हैं, वैसा ही आपका चुनाव होता है। <br />~ दूसरों की शिकायत बंद करें, पहले स्वयं को देखें। <br /><br />संगीत: मिलिंद दाते <br />~~~~~